2019 में यूपी के पुराने सारे रिकॉर्ड टूट जाते हैं 80 में से 8 सीटों पर कुर्मी प्रत्याशी की जीत हुई वह भी तब जब बाराबंकी कौशांबी हरदोई बहराइच जैसे कुर्मी बाहुल्य सीटों को आरक्षण के दायरे में लाकर कुर्मियों से दूर कर दिया जाता है।
अंबेडकर नगर लखीमपुर और बस्ती जैसे किले टैक्टिकल वोटिंग के चलते कुर्मी हार जाते हैं।
पीलीभीत को कृत्रिम रूप से एक परिवार विशेष के हवाले कर दिया जाता है और वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आकर कुर्मियों को न्यूट्रलाइज कर देते हैं इन सब के बावजूद 8 सीटों पर कुर्मियों का कब्जा हो जाता है जो कि लोकसभा के कुल 10% थी, तीन से पांच प्रतिशत कुर्मी आबादी दिखाने वाली मीडिया के मुंह पर यह तमाचा था, परिणाम 2022 में देखा जा सकता है विधायकों की संख्या ने भी सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए कुल 43 विधायक विजयी हुए जो की कुल संख्या का 10.67 फीसद है।
अब 24 के चुनाव सिर पर है उत्तर भारत के कुर्मी राजनीति के लिए यह decisive मोमेंट है time of judgement है प्रतापगढ़ गोंडा पीलीभीत बाराबंकी अंबेडकर नगर बस्ती लखीमपुर फतेहपुर में इस बार चूक नहीं करनी है अगर इस बार कुर्मी विचारधारा वह पार्टी मोह से ऊपर उठकर वोट देता है तो 12 से अधिक सांसद आसानी से बन सकते हैं संसद में 15% के लगभग आपकी हिस्सेदारी बहुत ही आसानी से मिल सकती है, स्वर्ण में एक जाति विशेष को आप बड़े ही आराम से पीछे छोड़ सकते हैं इसके परिणाम भारतीय राजनीति को हमेशा के लिए बादल भी सकते हैं लोकतंत्र में अपने हकों व पहचान के लिए वोकल होना बेहद जरूरी है, उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में आप जाटों को ही देख लीजिए।
कयास तो यहां तक भी लगाए जा रहे हैं कि 24 के चुनावों के बाद कभी भी उत्तर प्रदेश में सीएम फेस बदला जा सकता है, महाराजगंज से लगातार पांच बार के सांसद नरेंद्र मोदी जी व अमित शाह जी के बेहद करीबी वह कुशल उद्योगपति पंकज चौधरी योगी जी को रिप्लेस भी कर सकते हैं।
प्लेटफार्म कुर्मी समाज ने अपनी सूझ बूझ व मेहनत से तैयार कर लिया है अब बात उसे अंजाम तक पहुंचाने की है बात उत्तर प्रदेश से शुरू हुई है लेकिन पूरे भारत तक जाएगी सीमा से सटे मध्य प्रदेश के विंध्य क्षेत्र में भी बड़ा असर होगा।
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