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महाराज महादजी सिंधिया : एक कुर्मी जिसने ने अकेले पठानों,अफगानों और राजपूतो की कब्र खोद डाली

महादजी शिंदे - विकिपीडिया
वीर मराठा महादजी सिंधिया जिन्होंने 18 वीं शताब्दी में जब पूरे भारतवर्ष में त्राहि-त्राहि मची हुई थी किसी भी भारतीय शक्ति के अंदर अंग्रेजों की बढ़ती शक्ति शक्ति को रोकने का सामर्थ्य नहीं था अंग्रेजों की बड़ी एवं प्रशिक्षित सेना के सामने भारतीय ताश के  पत्तों की तरह बिखर थे चले चले जा रहे थे तब अकेले महादजी सिंधिया नहीं अपने दम पर अंग्रेजों से लोहा लिया और मजबूती के साथ राजनैतिक और कूटनीतिक दोनों ही मोर्चों पर अंग्रेजों वह अपने सारे शत्रुओं को हराकर मराठा कुर्मी क्षत्रियों का वर्चस्व स्थापित किया।
अंग्रेजी विद्वान विलियम जॉन्स के अनुसार महादजी सिंधिया 18 वीं सदी में सदी में दक्षिण एशिया में सबसे मजबूत व्यक्ति थे।
महादजी सिंधिया का जन्म 3 दिसंबर 1730 में हुआ था अपनी योग्यता निडरता वह वीरता के कारण महादजी सिंधिया मराठा साम्राज्य में बचपन से सम्मानित किए गए।
The Third Battle of Panipat changed the power equation in India ...
पानीपत के तृतीय युद्ध में जब मराठों व अहमद शाह अब्दाली के नेतृत्व के अंदर संयुक्त इस्लामिक  शक्तियों में युद्ध हुआ युद्ध में भीषण रक्तपात हुई दोनों ही पक्षों को भारी क्षति हुई थी महादजी सिंधिया अकेले मराठा सरदार थे जो युद्ध के बाद जीवित बचे थे बाकी सारे मराठा सरदार युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। इस स्थिति को देखते हुए सभी लोग ऐसी धारणा बना लिए थे कि भारत भूमि पर अब मराठा कुर्मी क्षत्रियों के शक्ति का पतन हो गया है और अब वह फिर से कभी पुनः अपने शीश को नहीं उठा सकते परंतु महादजी सिंधिया ने अपनी योग्यता का परिचय देते हुए इस धारणा को ध्वस्त कर दिया पानीपत के विध्वंसकारी युद्ध के मात्र 1 वर्ष बाद ही महादजी सिंधिया के नेतृत्व में मराठा कर्मियों ने रुहेलखंड पर आक्रमण कर दिया रुहेलों को अवध के नवाबों का समर्थन प्राप्त था इसके बाद भी मराठा रूहेलखंड पर कब्जा करने में सफल हुए। उन्होंने मुगलों के गृहयुद्ध में हस्तक्षेप करते हुए आलम को गद्दी पद बैठाया ,जो मराठों का कठपुतली मात्र था और वह वह और वह वह था और वह वह मराठों के दया पर ही अपना जीवन यापन यापन अपना जीवन यापन ही अपना जीवन यापन यापन पर ही अपना जीवन यापन यापन अपना जीवन यापन दया पर ही अपना जीवन यापन यापन अपना जीवन यापन ही अपना जीवन यापन यापन ही अपना जीवन यापन यापन अपना जीवन यापन कर रहा था। 1790 में महादजी सिंधिया ने जोधपुर और जयपुर के राजपूत राज्यों को हराकर उन्हें अपने अधीन कर लिया, मरता के युद्ध में राजपूतों को मुंह की खानी पड़ी ।
इसके उपरांत महादजी सिंधिया ने हैदराबाद के निजाम के विरुद्ध भी युद्ध की घोषणा की जिसमें निजाम को पूरी को पूरी तरह हार का मुंह देखना पड़ा।
महादजी सिंधिया ने अपने राज्य के अंदर हुए विभिन्न विद्रोह को सफलता पूर्ण पूर्ण को सफलता पूर्ण दमन किया तथा फ्रांसीसीयों के साथ महत्वपूर्ण रणनीतिक समझौते भी किए जिससे मराठा शक्ति में और भी ज्यादा वृद्धि हुई ।
महादजी सिंधिया के नेतृत्व में मराठा का अंग्रेजी अंग्रेजी शक्तियों  के मध्य तालेगांव का प्रसिद्ध युद्ध होता है ,जहां मराठा सैनिकों ने ने अंग्रेजों को बुरी तरह हराया भारत भूमि पर सबसे बड़ी शक्ति बन चुके अंग्रेजों को महादजी सिंधिया ने अकेले दम पर मध्य भारत तक ढकेल ढकेल दिया था ,तथा सालबाई की संधि करने पर विवश भी कर दिया था तथा गोहद के राणा को हराने के बाद नर्मदा व सतलज नदियों के बीच के सारे भूभाग पर मराठों का आधिपत्य आधिपत्य हो गया था।
12 फरवरी 1794 में को पुणे के पास वनावडी में महादजी सिंधिया ने अपनी आखिरी सांस ली महादजी सिंधिया के स्मृति में वनावडी में शिंदेछतरी का निर्माण किया गया।
Shinde Chhatri in Pune: a peek into the glorious Peshwa legacy
सरल छवि के वीर मराठा कुर्मी सरदार सरदार सरदार सरदार महादजी सिंधिया ने अपनी प्रतिभा को आधार बनाकर मराठा कुर्मियों को पानीपत के युद्ध में हुई क्षति से उभारा तथा भारत भूमि पर मराठा शक्ति को स्थापित किया अकेले अपने दम पर अफ़गानों,पठानों, रूहेलों ,राजपूतों व अंग्रेजों से लोहा लिया।

Comments

  1. Maratha kurmi kshatriya and maharaja of gwalior maharaja scindhiya ki jai ho. ❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤

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    1. जय कुर्मी क्षत्रिय समाज

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  2. महादजी सिंधिया ने ही रुहेलों को चुन चुन कर मारा था कुछ डरकर भाग गये ।
    हमारे पूर्वज सिंधिया की घुड़सवार सेना में थे ।
    1770 में बंगशो को इटावा से फर्रुखाबाद तक दौड़ाया , और यहां अपने प्रतिनिधियो को बसाया जो मूलतः उज्जैनी, कन्नौजी थे।
    1771 में नजीवखानं को हराने निकले लेकिन तब तक वह मर चुका था उसकी कब्र को तोप से उड़ा दिया गया,रुहेलों को चुन चुन कर मारा गया ,मराठा फ़ौज ने नजीबाबाद को लूट कर महल को तोड़ दिया।
    1772 में रुहेलों अलीगंज और विसौली में रुहेला मोहम्मद अली खां को मार भगाया,
    1772 में ही हाफिज रहमत खान जोकि पीलीभीत का रुहेला शाशक था उसको हराया , किसी तरह पहाड़ो में भागकर उसने अपनी जान बचाई ।
    इन सभी रुहेलों ने पानीपत की तीसरी लड़ाई में अब्दाली का साथ दिया था ।
    महदजी ने यहां पर मराठा सरदारों तथा सैनिको को बसाया ।
    जो आज गंगवार,जादव(यदुवंशी),कटियार,राठौड़ नाम से जाने जाते हैं ।

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    1. गंगवार kurmi jati me ati hai

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    2. जय कुर्मी क्षत्रिय समाज

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