Skip to main content

छत्रपति शिवाजी के वंशज कोल्हापुर के शासक कुर्मी कुल गौरव छत्रपति शाहूजी महाराज के बारे में जरुर पढ़े

छत्रपति साहू महाराज (जन्म- 26 जून1874; मृत्यु- 6 मई1922मुम्बई) को एक भारत में सच्चे प्रजातंत्रवादी और समाज सुधारक के रूप में जाना जाता था। वे कोल्हापुर के इतिहास में एक अमूल्य मणि के रूप में आज भी प्रसिद्ध हैं। छत्रपति साहू महाराज ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने राजा होते हुए भी दलित और शोषित वर्ग के कष्ट को समझा और सदा उनसे निकटता बनाए रखी। उन्होंने दलित वर्ग के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू की थी। गरीब छात्रों के छात्रावास स्थापित किये और बाहरी छात्रों को शरण प्रदान करने के आदेश दिए। साहू महाराज के शासन के दौरान 'बाल विवाह' पर ईमानदारी से प्रतिबंधित लगाया गया। उन्होंने अंतरजातिय विवाह और विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में समर्थन की आवाज उठाई थी। इन गतिविधियों के लिए महाराज साहू को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। साहू महाराज ज्योतिबा फुले से प्रभावित थे और लंबे समय तक 'सत्य शोधक समाज', फुले द्वारा गठित संस्था के संरक्षण भी रहे।









जन्म परिचय

छत्रपति साहू महाराज का जन्म 26 जून, 1874 ई. को हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीमंत जयसिंह राव आबासाहब घाटगे था। छत्रपति साहू महाराज का बचपन का नाम 'यशवंतराव' था। छत्रपति शिवाजी महाराज (प्रथम) के दूसरे पुत्र के वंशज शिवाजी चतुर्थ कोल्हापुर में राज्य करते थे। ब्रिटिश षडयंत्र और अपने ब्राह्मण दीवान की गद्दारी की वजह से जब शिवाजी चतुर्थ का कत्ल हुआ तो उनकी विधवा आनंदीबाई ने अपने जागीरदार जयसिंह राव आबासाहेब घाटगे के पुत्र यशवंतराव को मार्च, 1884 ई. में गोद ले लिया। बाल्य-अवस्था में ही यशवंतराव को साहू महाराज की हैसियत से कोल्हापुर रियासत की राजगद्दी को सम्भालना पड़ा। यद्यपि राज्य का नियंत्रण उनके हाथ में काफ़ी समय बाद अर्थात 2 अप्रैल, सन 1894 में आया था।
विवाह
छत्रपति साहू महाराज का विवाह बड़ौदा के मराठा सरदार खानवीकर की बेटी लक्ष्मीबाई से हुआ था।

शिक्षा

साहू महाराज की शिक्षा राजकोट के 'राजकुमार महाविद्यालय' और धारवाड़ में हुई थी। वे 1894 ई. में कोल्हापुर रियासत के राजा बने। उन्होंने देखा कि जातिवाद के कारण समाज का एक वर्ग पिस रहा है। अतः उन्होंने दलितों के उद्धार के लिए योजना बनाई और उस पर अमल आरंभ किया। छत्रपति साहू महाराज ने दलित और पिछड़ी जाति के लोगों के लिए विद्यालय खोले और छात्रावास बनवाए। इससे उनमें शिक्षा का प्रचार हुआ और सामाजिक स्थिति बदलने लगी। परन्तु उच्च वर्ग के लोगों ने इसका विरोध किया। वे छत्रपति साहू महाराज को अपना शत्रु समझने लगे। उनके पुरोहित तक ने यह कह दिया कि- "आप शूद्र हैं और शूद्र को वेद के मंत्र सुनने का अधिकार नहीं है। छत्रपति साहू महाराज ने इस सारे विरोध का डट कर सामना किया।

यज्ञोपवीत संस्कार

साहू महाराज हर दिन बड़े सबेरे ही पास की नदी में स्नान करने जाया करते थे। परम्परा से चली आ रही प्रथा के अनुसार, इस दौरान ब्राह्मण पंडित मंत्रोच्चार किया करता था। एक दिन बंबई से पधारे प्रसिद्ध समाज सुधारक राजाराम शास्त्री भागवत भी उनके साथ हो लिए थे। महाराजा कोल्हापुर के स्नान के दौरान ब्राह्मण पंडित द्वारा मंत्रोच्चार किये गए श्लोक को सुनकर राजाराम शास्त्री अचम्भित रह गए। पूछे जाने पर ब्राह्मण पंडित ने कहा की- "चूँकि महाराजा शूद्र हैं, इसलिए वे वैदिक मंत्रोच्चार न कर पौराणिक मंत्रोच्चार करते है।" ब्राह्मण पंडित की बातें साहू महाराज को अपमानजनक लगीं। उन्होंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया। महाराज साहू के सिपहसालारों ने एक प्रसिद्ध ब्राह्मण पंडित नारायण भट्ट सेवेकरी को महाराजा का यज्ञोपवीत संस्कार करने को राजी किया। यह सन 1901 की घटना है। जब यह खबर कोल्हापुर के ब्राह्मणों को हुई तो वे बड़े कुपित हुए। उन्होंने नारायण भट्ट पर कई तरह की पाबंदी लगाने की धमकी दी। तब इस मामले पर साहू महाराज ने राज-पुरोहित से सलाह ली, किंतु राज-पुरोहित ने भी इस दिशा में कुछ करने में अपनी असमर्थता प्रगट कर दी। इस पर साहू महाराज ने गुस्सा होकर राज-पुरोहित को बर्खास्त कर दिया।

छत्रपति शाहू जी महाराज जी के जीवन पर विशेष लेख ( 26 जून 1874 - 6 मई 1922 ) जरुर पढ़े और share भी करे

आरक्षण की व्यवस्था

सन 1902 के मध्य में साहू महाराज इंग्लैण्ड गए हुए थे। उन्होंने वहीं से एक आदेश जारी कर कोल्हापुर के अंतर्गत शासन-प्रशासन के 50 प्रतिशत पद पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित कर दिये। महाराज के इस आदेश से कोल्हापुर के ब्राह्मणों पर जैसे गाज गिर गयी। उल्लेखनीय है कि सन 1894 में, जब साहू महाराज ने राज्य की बागडोर सम्भाली थी, उस समय कोल्हापुर के सामान्य प्रशासन में कुल 71 पदों में से 60 पर ब्राह्मण अधिकारी नियुक्त थे। इसी प्रकार लिपिकीय पद के 500 पदों में से मात्र 10 पर गैर-ब्राह्मण थे। साहू महाराज द्वारा पिछड़ी जातियों को अवसर उपलब्ध कराने के कारण सन 1912 में 95 पदों में से ब्राह्मण अधिकारियों की संख्या अब 35 रह गई थी। सन 1903 में साहू महाराज ने कोल्हापुर स्थित शंकराचार्य मठ की सम्पत्ति जप्त करने का आदेश दिया। दरअसल, मठ को राज्य के ख़ज़ाने से भारी मदद दी जाती थी। कोल्हापुर के पूर्व महाराजा द्वारा अगस्त, 1863 में प्रसारित एक आदेश के अनुसार, कोल्हापुर स्थित मठ के शंकराचार्य को अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति से पहले महाराजा से अनुमति लेनी आवश्यक थी, परन्तु तत्कालीन शंकराचार्य उक्त आदेश को दरकिनार करते हुए संकेश्वर मठ में रहने चले गए थे, जो कोल्हापुर रियासत के बाहर था। 

स्कूलों व छात्रावासों की स्थापना

मंत्री ब्राह्मण हो और राजा भी ब्राह्मण या क्षत्रिय हो तो किसी को कोई दिक्कत नहीं थी। लेकिन राजा की कुर्सी पर वैश्य या फिर शूद्र शख्स बैठा हो तो दिक्कत होती थी। छत्रपति साहू महाराज क्षत्रिय नहीं, शूद्र मानी गयी कुर्मी से आते थे। कोल्हापुर रियासत के शासन-प्रशासन में पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व नि:संदेह उनकी अभिनव पहल थी। छत्रपति साहू महाराज ने सिर्फ यही नहीं किया, अपितु उन्होंने पिछड़ी जातियों समेत समाज के सभी वर्गों मराठा, महार, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, ईसाई, मुस्लिम और जैन सभी के लिए अलग-अलग सरकारी संस्थाएँ खोलने की पहल की। साहू महाराज ने उनके लिए स्कूल और छात्रावास खोलने के आदेश जारी किये। जातियों के आधार पर स्कूल और छात्रावास असहज लग सकते हैं, किंतु नि:संदेह यह अनूठी पहल थी उन जातियों को शिक्षित करने के लिए, जो सदियों से उपेक्षित थीं। उन्होंने दलित-पिछड़ी जातियों के बच्चों की शिक्षा के लिए ख़ास प्रयास किये थे। उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई। साहू महाराज के प्रयासों का परिणाम उनके शासन में ही दिखने लग गया था। स्कूल और कॉलेजों में पढ़ने वाले पिछड़ी जातियों के लड़के-लड़कियों की संख्या में उल्लेखनीय प्रगति हुई थी। कोल्हापुर के महाराजा के तौर पर साहू महाराज ने सभी जाति और वर्गों के लिए काम किया। उन्होंने 'प्रार्थना समाज' के लिए भी काफ़ी काम किया था। 'राजाराम कॉलेज' का प्रबंधन उन्होंने 'प्रार्थना समाज' को दिया था।
छत्रपति शाहू जी महाराज जी के जीवन पर विशेष लेख ( 26 जून 1874 - 6 मई 1922 ) जरुर पढ़े और share भी करे

कथन

  • छत्रपति साहू महाराज के कार्यों से उनके विरोधी भयभीत थे और उन्हें जान से मारने की धमकियाँ दे रहे थे। इस पर उन्होंने कहा था कि- "वे गद्दी छोड़ सकते हैं, मगर सामाजिक प्रतिबद्धता के कार्यों से वे पीछे नहीं हट सकते।"
  • साहू महाराज जी ने 15 जनवरी, 1919 के अपने आदेश में कहा था कि- "उनके राज्य के किसी भी कार्यालय और गाँव पंचायतों में भी दलित-पिछड़ी जातियों के साथ समानता का बर्ताव हो, यह सुनिश्चित किया जाये। उनका स्पष्ट कहना था कि- "छुआछूत को बर्दास्त नहीं किया जायेगा। उच्च जातियों को दलित जाति के लोगों के साथ मानवीय व्यवहार करना ही चाहिए। जब तक आदमी को आदमी नहीं समझा जायेगा, समाज का चौतरफा विकास असम्भव है।"
  • 15 अप्रैल, 1920 को नासिक में 'उदोजी विद्यार्थी' छात्रावास की नीव का पत्थर रखते हुए साहू महाराज ने कहा था कि- "जातिवाद का अंत ज़रूरी है. जाति को समर्थन देना अपराध है। हमारे समाज की उन्नति में सबसे बड़ी बाधा जाति है। जाति आधारित संगठनों के निहित स्वार्थ होते हैं। निश्चित रूप से ऐसे संगठनों को अपनी शक्ति का उपयोग जातियों को मजबूत करने के बजाय इनके खात्मे में करना चाहिए|"

समानता की भावना

छत्रपति साहू महाराज ने कोल्हापुर की नगरपालिका के चुनाव में अछूतों के लिए भी सीटें आरक्षित की थी। यह पहला मौका था की राज्य नगरपालिका का अध्यक्ष अस्पृश्य जाति से चुन कर आया था। उन्होंने हमेशा ही सभी जाति वर्गों के लोगों को समानता की नज़र से देखा। साहू महाराज ने जब देखा कि अछूत-पिछड़ी जाति के छात्रों की राज्य के स्कूल-कॉलेजों में पर्याप्त संख्या हैं, तब उन्होंने एक आदेश से इनके लिए खुलवाये गए पृथक स्कूल और छात्रावासों को बंद करा करवा दिया और उन्हें सामान्य व उच्च जाति के छात्रों के साथ ही पढने की सुविधा प्रदान की।

भीमराव अम्बेडकर के मददगार

ये छत्रपति साहू महाराज ही थे, जिन्होंने 'भारतीय संविधान' के निर्माण में महत्त्वपूर्व भूमिका निभाने वाले भीमराव अम्बेडकर को उच्च शिक्षा के लिए विलायत भेजने में अहम भूमिका अदा की। महाराजाधिराज को बालक भीमराव की तीक्ष्ण बुद्धि के बारे में पता चला तो वे खुद बालक भीमराव का पता लगाकर मुम्बई की सीमेंट परेल चाल में उनसे मिलने गए, ताकि उन्हें किसी सहायता की आवश्यकता हो तो दी जा सके। साहू महाराज ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर के 'मूकनायक' समाचार पत्र के प्रकाशन में भी सहायता की। महाराजा के राज्य में कोल्हापुर के अन्दर ही दलित-पिछड़ी जातियों के दर्जनों समाचार पत्र और पत्रिकाएँ प्रकाशित होती थीं। सदियों से जिन लोगों को अपनी बात कहने का हक नहीं था, महाराजा के शासन-प्रशासन ने उन्हें बोलने की स्वतंत्रता प्रदान कर दी थी।

निधन

छत्रपति साहूजी महाराज का निधन 6 मई, 1922 मुम्बई में हुआ। महाराज ने पुनर्विवाह को क़ानूनी मान्यता दी थी। उनका समाज के किसी भी वर्ग से किसी भी प्रकार का द्वेष नहीं था। साहू महाराज के मन में दलित वर्ग के प्रति गहरा लगाव था। उन्होंने सामाजिक परिवर्तन की दिशा में जो क्रन्तिकारी उपाय किये थे, वह इतिहास में याद रखे जायेंगे।
अन्य जानकारी 
ब्रिटिश कालीन भारत के 10 सर्वाधिक प्रभावशाली राज्यों मे से एक कोल्हापुर के शासक थे, राजऋषि छत्रपति शाहूजी महाराज। उनके शासनकाल मे लिये गये जनकल्याणकारी फैंसलों की गूंज लंदन तक सुनाई पड़ती थी। उनकी लोककत्याणकारी नीतियों से प्रभावित होकर कैंब्रिज यूनीवर्सिटी ने उन्हें डाॅक्टर ऑफ लाॅ ('LLD) की उपाधि से सम्मानित किया। ऐसे महापुरुष को उनकी जन्मजयन्ती पर शत-शत नमन।

सयाजी राजे गायकवाड़, गंगाधर तिलक, गाँधी जी और अंबेडकर पर उनका गहरा प्रभाव था। उन्होंने अपने जीवन काल मे हर एक अपराधी को उचित दंड और हर विद्वान को यथायोग्य सत्कार दिया। धूर्त लोगों की कुटिलता को सही दंड देने मे वह कभी पछे नहीं रहे, भले ही अपराधी शंकराचार्य के पद पर ही क्यों न बैठा हो।

महाराजा कोल्हापुर का यह दृढ़ विश्वास था कि शिक्षा मे मानव समाज के सभी दुःखों को हरने की अपार शक्ति है। इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु उन्होंने अपने राज्यक्षेत्र मे सभी केलिए निशुल्क अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था करवाई। माध्यमिक व उच्च शिक्षा केलिए कोल्हापुर शहर मे महाराजा ने 22 छात्रावासों का निर्माण कराया।

कोल्हापुर राज्य को सूखे और बाढ़ से निजात दिलाने के लिए उन्होंने प्रख्यात इंजीनियर विश्वेशरैया जी से एक विशालकाय बांध का निर्माण करवया। इस बाध की सिचाई सुविधाओं का लाभ कोल्हापुर के किसान आज भी ले रहे हैं। कृषि के उचित प्रबंधन केलिए उन्होंने कई यूरोपीय विशेषज्ञों को अपनी राजकीय सेवा में रखा हुआ था।

अछूत समझे जाने वाले समाज के लोगों को समाज की मुख्यधारा जोड़ने केलिए उनका सर्वाधिक क्रांतिकारी निर्णय था उस समाज के लोगों को संपत्ति और भूमि का अधिकार देना। उन्होंने अनेकों दलितों को भूमिधरी स्तर प्रदान किया।

विठ्ठलभाई पटेल का हिंदू कोड बिल नेशनल असेंषली मे अस्वीकृत होने पर भी कोल्हापुर पहला ऐसा राज्य बना जहाँ हिंदू कोड बिल प्रभाव मे आया। इसके माध्यम से महाराजा ने विधवा पुनर्विवाह पर जोर दिया। उनके द्वारा सुरू किये गये अनेकानेक प्रयास आधुनिक भारत के निर्माण मे नींव का पत्थर साबित हुए। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, उनके अधिकांश प्रकल्पों को भारत के समग्र विकास के लिये उपयोगी व प्रभावी मानते हुए स्वीकृति प्रदान की गई।

परजीवी समाज के निकम्मेपन को खत्म करने तथा राजकीय सेवाओं मे दक्षता और पारदर्शिता लाने केलिए उन्होंने श्रमजीवी समाज के लोगों को राजकीय सेवा मे लेना सुरू किया। इस उद्देश्य मे अड़चन डालने वालों को किनारे करने के लिए महाराजा ने राजकीय सेवाओं मे श्रमजीवी समाज के लोगों केलिए पहले 50% और फिर बाद मे 90% आरक्षण की व्यवस्था लागू की। लेकिन आरक्षण लागू करते हुए महाराजा ने कभी भी दक्षता और कार्यकुशलता से समझौता नहीं किया। आरक्षण लागू करते समय उन्होंने यह कभी नहीं सोचा होगा कि उनका अपना समाज भी इतना कमजोर और लाचार सो जाएगा कि उसे भी आरक्षण की जरूरत पड़ेगी।

शिक्षा की समुचित व्यवस्था मे अपना सहयोग प्रदान कर हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं। उनका कहना था
"कल न मै होंऊगा, न आप होंगे, न राजा होंगे, न रजवाड़े होंगे। मगर यह राष्ट्र हमेशा रहेगा और हमे इसको आगे बढ़ाने का काम करते रहना है। समाज मे सबको सम्मान मिले, सभी शिक्षित होकर राष्ट्र के उत्थान मे भागीदार बनें। तभी हमारा जीवन सफल माना जायेगा।"

महामहीम राज्यपाल उत्तर प्रदेश श्री राम नाइक जी ने CM को लेटर लिख बताया-छत्रपति शाहूजी महाराज का सही जन्‍मदि‍न
लखनऊ स्थित प्रतिष्ठित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में इस साल 26 जुलाई को छत्रपति शाहूजी महाराज स्मृति मंच ने उनकी जयंती मनाई थी। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में गलत तारीख पर जयंती मनाने का मामला सामने आने पर राज्यपाल ने पाया कि सरकारी रेकॉर्ड्स में भी छत्रपति शाहूजी महाराज की जन्मतिथि गलत है। जिसके बाद उन्होंने महाराष्ट्र सरकार को इस बारे में पत्र लिखकर सही जानकारी मांगी। जिसके बाद महाराष्‍ट्र सरकार के सांस्कृतिक मंत्री विनोद तावड़े ने राज्यपाल को जानकारी उपलब्ध कराई। छत्रपति शाहूजी महाराज की सही जन्मतिथि पता करने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने 2005 में इतिहासकारों और साहित्यकारों की एक समिति गठित की थी। समिति ने उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार निष्कर्ष निकाला कि शाहूजी महाराज की जन्मतिथि 26 जून 1874 है। 

राजा होते हुए दलि‍तों के उत्‍थान की लड़ाई लड़ने वाले छत्रपति शाहूजी महाराज के जन्‍मदि‍न को लेकर भ्रम को राज्यपाल ने दूर कर दिया है। राज्यपाल राम नाईक ने सीएम अखि‍लेश यादव को पत्र लि‍ख कर कहा है,''छत्रपति शाहूजी महाराज का जन्म 26 जून 1874 को हुआ था। सभी सरकारी दस्‍तावेजों में संसोधन कर 26 जुलाई को 26 जून कर दिया जाए। जिससे भविष्य में किसी तरह का कोई भ्रम न रहे।''

मायावती को भी लिखा लेटर
सीएम के अलावा राज्‍यपाल राम नाईक ने लेटर के माध्यम से बीएसपी प्रमुख मायावती और छत्रपति शाहूजी महाराज यूनिवर्सिटी कानपुर के कुलपति को भी जानकारी दी है।
राजा होते हुए दलि‍तों के उत्‍थान की लड़ाई लड़ने वाले छत्रपति शाहूजी महाराज का आज का भारत सदैव ऋणी रहेगा। ऐसे दिव्य महापुरुष को उनकी जन्म जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि।

India Post, भारत सरकार द्वारा जारी किया गया डाक टिकट

जीवन परिचय पर  लिखी गयी किताबों का संग्रह : 









Comments

Popular posts from this blog

कुर्मी वंश का गौरव शाली इतिहास पार्ट 1

जो स्थान यूरोप के इतिहास में रोमन व ग्रीक का है वही स्थान भारतीय इतिहास में कूर्म वंश का हैं। इसी कूर्म वंश में छत्रपति शिवाजी महाराज, छत्रपति संभाजी महाराज, राजा मिहिरभोज, राजा राजा चोलम प्रथम जैसे वीरो ने जन्म लिया। विश्व की प्राचीनतम पुस्तक वेदों में भी कूर्म वंश का उल्लेख मिलता है जोकि कुर्मी समाज की प्राचीनता को दरसत है। पूरा दक्षिण-एशिया कूर्म वंश के राज के अंदर राह चुका हैं। राजा राजा चोलम प्रथम व राजेन्द्र चोल जैसे कुर्मी वीरो ने दक्षिण-पूर्व देशों के ऊपर भी विजय प्राप्त की और भारतीय संस्कृति व सनातन धर्म का प्रचार किया जिसका अंश आज भी मलेशिया, थाईलैंड जैसे कई अन्य दक्षिण-पूर्वी देशों में दिखाई देती है।भारतीय संस्कृति व कला में कुर्मियों का एक बड़ा योगदान है  विश्वभर में बने अधिकतर विशाल व प्राचीन हिन्दू मंदिर कूर्म वंश के राजाओं द्वारा ही बनाये गए है जैसे कि विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर जोकि थाईलैंड में स्थित हैं उसका भी निर्माण कुर्मी नरेश सूर्यदेव वर्मन ।। ने ही कराया था। वर्तमान समय मे भारत सहित नेपाल, बंगलादेश, बलूचिस्तान, श्रीलंका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया,...

Kurmi Samaj Ke Kitne CM Hai

कूर्मि समाज की पहचान प्राचीन काल से ही शासक वर्ग की रही है । कुर्मियों ने पूरे दक्षिण भारत पर शाशन किया और आज हम आपको बताने वालें है कूर्मि समाज के मुख्यमंत्रीयों के बारें में 1. नीतीश कुमार   बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सुशाशन बाबु नाम से भी जाना जाता है ।वह जनता दल यूनाइटेड से 12 सालों से बिहार के मुख्यमंत्री बने हुए है। 2. कुमार स्वामी कुमार स्वामी जी जनता दल सेक्युलर से कर्नाटक से मुख्यमंत्री हैं वे पूर्व प्रधानमंत्री श्री एच डी देवगौड़ा जी के सुपुत्र हैं । 3. जगन मोहन रेड्डी   जगन मोहन रेड्डी जी वाई एस आर कांग्रेस से प्रचंड बहुमत के साथ आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बनें हैं। विधानसभा के अलावा उन्होंने लोकसभा में भी अच्छा प्रदर्शन किया था। 4. प्रमोद सावंत   प्रमोद सावंत जी भाजपा से गोआ के मुख्यमंत्री बने हैं उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मनोहर पर्रिकर जी की मृत्यु के बाद चुना गया था । गोआ के अलावा प्रमोद सावंत जी महाराष्ट्र में भी एक बड़े नेता है। 5. भूपेश बघेल   भूपेश बघेल जी कांग्रेस से छत्तीसगढ़ से मुख्यम...

History Of Kurmi Community || Glory Of Vedic Kshatriya Kurmi

Kurmi is an ancient Kshatriya caste which has it’s origin near Indian Sub-continent. Almost all of the South-Asia Has been ruled by the Kurmi Kings in different phases of the History. The Significance growth of Hinduism and Indian Culture in the South-East Countries is the result of hose Kurmi Kings who have ruled almost the entire Sub-Continent.   Kurmi caste is also recognized as the saviors and protectors of the Hinduism and Indians History and Culture because of their numerous battles that they fought against the invaders (from the ancient time to the modern). Courage and loyalty are the main characteristics of Kurmi Community. FACTS OF KURMI COMMUNITY RELIGION Hinduism VANSH Suryavansh, Chandravansh ORIGIN Bhagwan Ram FLAG Saffron   VARNA   Kshatriya ANCIENT TIME As we all know that the Kurmi community is an great ancient community living in Indian Sub-Continent. We get numerous...