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Showing posts from April, 2019

कुर्मी वंश का गौरव शाली इतिहास पार्ट 1

जो स्थान यूरोप के इतिहास में रोमन व ग्रीक का है वही स्थान भारतीय इतिहास में कूर्म वंश का हैं। इसी कूर्म वंश में छत्रपति शिवाजी महाराज, छत्रपति संभाजी महाराज, राजा मिहिरभोज, राजा राजा चोलम प्रथम जैसे वीरो ने जन्म लिया। विश्व की प्राचीनतम पुस्तक वेदों में भी कूर्म वंश का उल्लेख मिलता है जोकि कुर्मी समाज की प्राचीनता को दरसत है। पूरा दक्षिण-एशिया कूर्म वंश के राज के अंदर राह चुका हैं। राजा राजा चोलम प्रथम व राजेन्द्र चोल जैसे कुर्मी वीरो ने दक्षिण-पूर्व देशों के ऊपर भी विजय प्राप्त की और भारतीय संस्कृति व सनातन धर्म का प्रचार किया जिसका अंश आज भी मलेशिया, थाईलैंड जैसे कई अन्य दक्षिण-पूर्वी देशों में दिखाई देती है।भारतीय संस्कृति व कला में कुर्मियों का एक बड़ा योगदान है  विश्वभर में बने अधिकतर विशाल व प्राचीन हिन्दू मंदिर कूर्म वंश के राजाओं द्वारा ही बनाये गए है जैसे कि विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर जोकि थाईलैंड में स्थित हैं उसका भी निर्माण कुर्मी नरेश सूर्यदेव वर्मन ।। ने ही कराया था। वर्तमान समय मे भारत सहित नेपाल, बंगलादेश, बलूचिस्तान, श्रीलंका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्य

कुर्मी नरेश राजा राजा चोलन प्रथम का गौरवशाली इतिहास

आज हम जानने वाले है मध्यकालीन समय के एक महान कुर्मी सम्राट राजा राजा चोलन प्रथम के बारे में, जिनका साम्राज्य कलिंग (वर्तमान समय के ओडिशा), सम्पूर्ण दक्षिण भारत, श्री लंका का 75 फीसदी भाग, पूरा मालदीव, थाईलैंड व मलेशिया समेत कई दक्षिण-पूर्वी देशों तक फैला था। उन्होंने सन 985 से लेकर सन 1014 तक शासन किया। राजा राजा चोलम भगवान शिव के उपासक थे तथा सनातन धर्म के शैव्य साखा से जुड़े थे। उन्होंने अपने राज्य के दौरान पूरे दक्षिण-पूर्व में सनातन धर्म व भारतीय संस्कृति का विस्तार किया जिसका असर आज भी देखा जा सकता है। कई धार्मिक व ऐतिहासिक ग्रंथों में राजा राजा चोलम को ;राजा राजा शिवपद शेखर; नाम से भी संबोधित किया गया है अर्थात :- जिसके पास उसके मुकुट के रूप में भगवान भोलेनाथ के चरण उपस्थित है। तंजावुर का ऐतेहासिक हिन्दू मंदिर, जो कि विश्व के सबसे बड़े हिन्दू मंदिरो मे से एक है उसका भी निर्माण राजा राजा चोलन प्रथम ने ही कराया था। राजा राजा चोलन प्रथम के पास एक बड़ी व अति सक्तिसाली नौसेना भी थी जिसका प्रभुत्व बंगाल की खाड़ी, अरब सागर व हिन्द महासागर के एक बड़े भाग पर हुआ करता था। बाद मे

रुहेलखंड के क्षत्रिय कुर्मियों का गौरवशाली इतिहास

रुहेलखंड की भूमि पर कुर्मियों के अस्तित्व की शुरुआत होती है , एक बदले की भावना से ,1781 का बदला , जी हां पानीपत के तृतीय युद्ध के दौरान जब मराठो को भारी क्षति का सामना करना पड़ा था। एक ओर सारे मुस्लिम शासक इस्लाम के नाम पर एक हो गए थे वही दूसरी ओर मराठो का साथ देने का लिए कोई सामने नही आया, पानीपत का जलवायु भी मराठो के विरुद्ध था पर इसका यह मतलब बिल्कुल भी नही था कि मराठे हार मान जाये, खैर मराठे पानीपत कैसे हारे यह एक अलग चर्चा का विषय है, पर आक्रमणकारियो यह मानकर बैठ गए कि मराठे इतनी बड़ी क्षति झेल नही पाएंगे और मराठा शक्ति का पतन हो जाएगा पर उनकी यह सोच ग़लत साबित हुई और सन 1772 में महाजदजी सिंदिया के नेतृत्व में मराठो ने रुहेलखंड पर आक्रमण कर दिया, रुहेल रुहेलखंड के शासक थे तथा रुहेलखंड की स्थानीय शक्ति भी , भीषण रक्तपात घनघोर युद्ध के बाद अंत मे मराठो ने रुहेलों ही हरा दिया और पुनः सबको दिखा की मराठो ने अभी हर नही मानी है। उसी वर्ष 1772 में महाजदजी ने राजनीतिक तथा कूटनीति के लिए मराठो को यहाँ बसाना सुरु किया। तब से लेकर आज तक रुहेलखंड की धरती पर कुर्मियों का ही औपचारिक या अनोपचारिक

Why Kurmi And Gurjars Have Same Origin Kurmi-Gurjar Ekta

कुर्मी और गुर्जर दोनों ही भारतवर्ष की बड़ी कृषक जातियां हैं कुर्मी गुर्जर एकता का कांसेप्ट जब भी कहीं शुरू होता है बात अंत में यही आ कर सकती है कि है कि सकती है कि है कि कर सकती है कि है कि सकती है कि है कि पहले मुर्गी आई या अंडा जब भी कोई महान काम शुरू होता है तो उस काम को लटकाने वाले उसकी आलोचना करने वाले वहां पर आप अच्छे आशिक आशिक रूप से निमंत्रित रहते हैं यहां भी कुछ ऐसा ही है एकता की बात कुर्मी और गुर्जर दोनों ही तरफ से हो रही है हो रही है से हो रही है तरफ से हो रही है ह ो रही है हो रही है पर कुछ लोग इसी कारण डर में आकर आकर बौखलाहट में किसी भी तरीके से होना नहीं देना चाहते क्योंकि उन्हें पता है की कुर्मी और गुर्जर दोनों ही भारतवर्ष की की ही भारतवर्ष की महान कृषक जातियां हैं अगर वह दोनों एक होती हैं एक मंच पर आती है तो बहुजन वाद ब्राह्मणवाद तथा इस प्रकार के सभी वादों पर कुर्मी गुर्जर एकता भारी पड़ेगी और उनकी दुकानें बंद हो जाएंगी कुर्मी गुर्जर समाज की आबादी भारत में 30 करोड़ के आसपास के आसपास है जो कि देश में में देश में में अधिकांश लोकसभा और विधानसभा सीटों पर बहुल

History Of Yaduwanshi-Kurmi Samaj

यदुवंश को अक्सर हम सभी एक विशेष जाती से जोड़ लेते है जो की बिल्कुल ही गलत है। यदुवंश एक वंश है ना कि कोई जाति और इस वंश में कुर्मी समाज के लोगो की आबादी बहुत है। यदुवंश के जुड़े कुछ तथ्य :- शाखा – जादो/जाधव जादव वंश – यदुवंश ठिकाना – द्वारिका से देवगिरि , सिंदखेड़,महाराष्ट्र , महाराष्ट्र से उत्तर प्रदेश गोत्र – अत्रि कुलदेवी – माता योगेश्वरी वर्ण – क्षत्रिय ध्वज – केसरिया भोज ,अंधक,वृंसनी आदि यदुवंशी कुर्मियों की शाखाएं है । 1761 के पानीपत के तृतीय युद्ध तथा 1772 में रुहेलों पर हुए आक्रमण में यदुवंशी कुर्मियों ने अपने शौर्य का प्रदर्शन किया । इसके बाद से यदुवंशी कुर्मी समाज दी भागो में बात गया था 1- जो महाराष्ट्र में ही रुक गए और मराठा कुनबी कह लाए। 2- और वह जो पानीपत के तृतीय युद्घ का बदला लेने के लिए रुहेलखंड आये कुछ प्रमुख यदुवंशी कुर्मी सख्शियत:- कुंवर मोहनस्वरूप यदुवंशी – पूर्व सांसद पीलीभीत कुंवर ढाका लाल राय बहादुर – स्वतंत्रा सेनानी महेंद्र सिंह यदुवंशी – पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष, आंदोलनकारी असगयोग आंदोलन संतोष गंगवार – सांसद बरेली , केंद्रीयमंत्री के० डी० जाधव

Tarabai The Martha-Kurmi Queen Who Defeated Aurangzeb

इसमे कोई भी संदेह नही है कि महिलाएं पुरुषो से किसी भी मायने में काम होती है । हम भारतवर्ष में रहते है जहाँ महिलाओं को देवी के रूप में पूजा जाता है और ताराबाई जैसी स्त्रियां इसी कथन को सत्य सिद्ध कर देती है। एक ऐसी स्त्री जिसके पति की मृत्यु हो गयी हो , वह चारो ओर से आक्रमणकारियो से घिरी हो घर मे भी भीषण गृहयुद्ध चल रहा हो अंदर और बार समस्याए हर जगह हो परंतु इतनी सारी दुविधाओं के बाद भी मातृभूमि की रक्षा के लिए सदैव प्रयासरत हो।  मुस्लिम इतिहासकार खासी खान ने ताराबाई की भरपूर प्रसंसा करते हुए लिखा है कि ताराबाई के दिशा-निर्देश में मराठो की गतिविधियों दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी । उसने सेनापतियों की नियुक्ति और स्तानन्तरण, देश की कृषि उपज तथा मुग़ल अधिपत्य के अधीन प्रदेशो पर हमला की योजनाएं आदि सभी कार्यो की नियंत्रण स्वयं अपने हाथों में ले लिया । उसने अधिकारियों का हृदय विजित करने के लिए सैनिक टुकड़ियों को भेजने की ऐसी व्यवस्था की कि उसके कार्यकाल में मराठो के विरुद्ध औरंगजेब द्वारा किये सारे प्रयाश विफल हो गए । ताराबाई ने जगह जगह जाकर मुगलों के विरुद्ध मराठा अभियानों को दिशा

Why Kurmi-Patel And Kunbi-Marathas Are Same Community

मैं उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूं मैं अपने अभी तक के 15 वर्ष के जीवन में कभी भी महाराष्ट्र नहीं गया पर सोशल मीडिया के माध्यम से अपने से हजारों किलोमीटर दूर बैठे अपने मराठा कुर्मी भाइयों से मिल पाया और मैं जितने भी भाइयों से मिला उनमें से लगभग सब ने यह माना यह माना उत्तर मे हम जीने पटेल कुर्मी कहते हैं और दक्षिण में जिन्हें हम मराठा कुनबी कहते हैं उनमें कोई भी अंतर नहीं है पर बीच-बीच में से कुछ लोग मिलते रहते हैं जो इस बात से सहमत नहीं हालांकि इस बात का कोई प्रूफ भी नहीं है कि वह मराठे हैं भी या या भी या या नहीं क्योंकि आजकल तो फेक आईडी का नया ट्रेंड सा चला है फर्जी मराठों द्वारा दिए जाने वाले कुछ बे-बुनियादी तर्क जिनके आधार पर वे पटेल कुर्मी और मराठा कुनबीयों को को अलग बताते हैं तर्क नंबर 1- मराठा कुनबी एक बड़ी जाती है और पटेल कुर्मी एक छोटी जाती है तर्क नंबर 2- कुर्मी कृषक जाती है और मराठा नहीं तर्क नंबर 3-सारे राजवंश और राजा सिर्फ मराठों के हुए कुर्मियों के नहीं तर्क नंबर 4- कुर्मी उत्तर के हैं और मराठे दक्षिण के तो इन दोनों में कोई समानता ही नहीं है। इनके खोखले तर्कों

Uttar-Pradesh Ki Rajneeti Me Kyu Peechda Kurmi Samaj

उत्तर प्रदेश की राजनीति में क्यों पिछड़ा कुर्मी समा उत्तर प्रदेश जोकि देश का सबसे बड़ा प्रदेश है। लोकसभा की कुल 80 सीटे आती है यहां से । ऐसा भी माना जाता है कि दिल्ली का रास्ता उत्तरप्रदेश से हो कर ही निकलता है। तभी तो नरेंद्र मोदी,राहुल गांधी, सोनिया गाँधी जैसे बड़े नेता उत्तरप्रदेश से न होते हुए भी यही से चुनाव लड़ते है और इन्ही वजहों से उत्तरप्रदेश की राजनीति हमेसा गर्म रहती है। देश के बहुत से प्रधानमंत्रियों के संसदीय-क्षेत्र उत्तरप्रदेश से ही है पर इन सभी के बीच मे एक ऐसा समुदाय है जो अभी भी आने अस्तित्व के लिए लड़ रहा है। जी हां कुर्मी समाज को उत्तरप्रदेश में 14 फीसदी की आबादी रखता है, अवध,पूर्वांचल, ब्रज तथा पश्चिमी उत्तरप्रदेश हर जगह कुर्मी वोटरों की अच्छी-खासी संख्या है। प्रदेश में बेनीप्रसाद वर्मा,ओमप्रकाश सिंह तथा संतोष गंगवार जैसे दिग्गज नेता होने के बावजूद कभी भी कोई कुर्मी उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री नही बन सका यहाँ तक कि कैबिनेट में भी सही प्रतिनिधितव तक नही मिला । मंडल आयोग की सिफारिश लागू होने के बाद कुर्मी समाज को सीधे-तौर पर फायदा हुआ पर यह फायदा और उछाल

Uttar-Pradesh Kurmi Samaj And its Politics

मीडिया के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुर्मी समाज की जनसंख्या 3 से 5 प्रतिशत है। हालांकि यह काफी विवादस्पक रहा है बहुत से कुर्मी संगठनों ने इसका खंडन किया है कुर्मियों का अपना खुद का अनुमान कहता है कि वह उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग में आने वाली सबसे बडी जाती है और उनकी जनसंख्या 13% के आसपास है । यह दावा मीडिया के दावे से ज्यादा सही लगता है क्योंकि कुर्मी समाज पूर्वांचल और अवध मे बडी राजनैतिक शक्ति है वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे भी कुर्मी समाज की मौजूदगी है मेरठ, मुजफ्फरनगर, आगरा, इटावा आदि जिलों में कुर्मी समाज की अच्छी खासी आबादी है । उत्तर प्रदेश की राजनीति में जहाँ 90% से अधिक अहिरों, सवर्णों, अल्पसंख्यकों व दलितों के वोट उनके पारंपरिक दलो को पहले से ही फिक्स होते हैं वहाँ 13% के आबादी वाले कुर्मी समाज के वोटों की अहमियत बड़ जाती हैं जो कि लगभग हर चुनाव में अपना दल बदलतें हैं और यही वोट जिस दल को जातें हैं वह उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत से सरकार बनाते हैं। 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनावों मे भाजपा को उत्तर प्रदेश में मिली बंपर जीत का श्रैय काफी हद तक कुर्मी समा

Bihar Ka Kurmi Samaj

बिहार जनसंख्या के हिसाब से भारतवर्ष का तीसरा सबसे बड़ा राज्य राज्य है लोकसभा की कुल 40 सीटें होती हैं यहां से किसी भी राजनीतिक दल के लिए बिहार 1 महत्वपूर्ण राज्य है क्योंकि 40 सीटें किसी भी दल को प्रचंड बहुमत भी दिला सकती हैं और हरा भी सकती हैं इसी बिहार पर 12 वर्षों से अधिक राज करने वाले नीतीश कुमार जी भी जाति से कुर्मी ही है नीतीश कुमार का राजनैतिक काल का आरंभ बिहार की राजधानी पटना में हुई कुर्मी रैली से ही हुई थी मीडिया के अनुसार कुर्मी समाज की जनसंख्या 3 से 5% के आस पास है पर यह आंकड़ा बिल्कुल गलत है क्योंकि जाति प्रथा बिहार में काफी ज्यादा चलन में है और ऐसे में ऐसा समुदाय जिसकी जनसंख्या मात्र 5% है तो उसका कोई आदमी भला 12 वर्ष से अधिक कैसे शासन कर सकता है बिहार में कुर्मी समाज की कुछ उप-जातियों को स्वतंत्र जाति की तरह प्रचारित किया जा रहा है उस जाति के लोग खुद जानते हैं कि वह कुर्मी समाज के सदस्य हैं उनके सारे वैवाहिक संबंध तथा अन्य संबंध कुर्मी जाति से ही है चनउ कुर्मी समाज कुर्मी समाज की एक उपजाति है उससे उत्तर प्रदेश में कुर्मी नाम से जाति प्रमाण पत्र मिलता है पर

Kurmi Kshatriya Kaise Hue?

कुर्मी समाज जो दक्षिण-एशिया में फैला एक बड़ा शांतिप्रिय खेतीयर समाज है तो वो भला क्षत्रिय कैसे हुआ? पहले हमें यह जानना होगा कि कुर्मी एक जाति है वही क्षत्रिय एक वर्ण है। वर्ण कुल चार प्रकार के होते है :- ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शुद्र क्षत्रिय की परिभाषा क्षत्रिय शब्द क्षत्र शब्द से बना है क्षत्र शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है क्षर् + त्र क्षदति रक्षति जनानू इति क्षत्रिय: उपयुक्त पंक्ति का अर्थ है कि :- जीवन की रक्षा करने वाला ही क्षत्रिय है वही सभी हिन्दू धर्मग्रंथों व पुस्तको में वर्ण व्यवस्था कर्म आधारित है ना जन्माधारित वही दूसरी ओर जाती व्यवस्था जन्माधारित होती है ना कि कर्मधारित तो भला एक विशेष जाती किसी विशेष वर्ण का हिस्सा कैसे हो सकती है। पर जब आगे जाकर समाज मे गंदगी,बुराई व अज्ञान बढ़ा तो वर्ण व्यवस्था कर्म से हट कर जन्माधारित ही गई जो कि बिल्कुल गलत और अशुद्ध है। किसी भी हिन्दू धर्मग्रंथ में जन्माधारित वर्ण व्यवस्था का उल्लेख नही है तो फिर ये जन्माधारित वर्ण व्यवस्था क्या है? यह एक सामाजिक-कुरीति है। हम जैसे लोग तो सामाजिक-कुरीतियों से दूर ही रहते है,