कुर्मी समाज जो दक्षिण-एशिया में फैला एक बड़ा शांतिप्रिय खेतीयर समाज है तो वो भला क्षत्रिय कैसे हुआ?
पहले हमें यह जानना होगा कि कुर्मी एक जाति है वही क्षत्रिय एक वर्ण है।
वर्ण कुल चार प्रकार के होते है :-
ब्राह्मण
क्षत्रिय
वैश्य
शुद्र
क्षत्रिय की परिभाषा
क्षत्रिय शब्द क्षत्र शब्द से बना है
क्षत्र शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है
क्षर् + त्र
क्षदति रक्षति जनानू इति क्षत्रिय:
उपयुक्त पंक्ति का अर्थ है कि :-
जीवन की रक्षा करने वाला ही क्षत्रिय है
वही सभी हिन्दू धर्मग्रंथों
व पुस्तको में वर्ण व्यवस्था कर्म आधारित है ना जन्माधारित वही दूसरी ओर जाती व्यवस्था जन्माधारित होती है ना कि कर्मधारित तो भला एक विशेष जाती किसी विशेष वर्ण का हिस्सा कैसे हो सकती है।
पर जब आगे जाकर समाज मे गंदगी,बुराई व अज्ञान बढ़ा तो वर्ण व्यवस्था कर्म से हट कर जन्माधारित ही गई जो कि बिल्कुल गलत और अशुद्ध है। किसी भी हिन्दू धर्मग्रंथ में जन्माधारित वर्ण व्यवस्था का उल्लेख नही है तो फिर ये जन्माधारित वर्ण व्यवस्था क्या है?
यह एक सामाजिक-कुरीति है।
हम जैसे लोग तो सामाजिक-कुरीतियों से दूर ही रहते है, बहिस्कार करते है।
हमारे कुर्मी समाज मे ही संत तुकाराम व भगवान बुद्ध जैसे महात्मा हुए की अपने कर्म से ब्राह्मण हुए।
हमारे समाज मे छत्रपति शिवाजी महाराज व संभाजी महाराज जैसे अनेको वीर हुए जो कि अपने कर्म से क्षत्रिय हुए।
हमारे समाज मे ही विष्णु पटेल, सावजी ढोलकिया व पंकज पटेल जैसे कुशल उद्योगपति हुए जो कि अपने कर्म से वैश्य हुए।
हमारे समाज मे ही कुछ लीग सर्विस-प्रोवाइडर है जो कि अपने कर्म से शुद्र हुए।
इसका मतलब कुर्मी एक मानव होने के नाते कुर्मी ब्राह्मण, क्षत्रिय , वैश्य तथा शुद्र कुछ भी हो सकता है।
पर वह जन्म से एक उदारवादी कृषक ही है।
kurmisutra.com पर आने के लिए धन्यवाद
आप हमारे यूट्यूब चैनल KurmiSutra पर भी हमसे जुड़ सकते है:-
https://www.youtube.com/channel/UCTZp0eDApnEgHDHwPthG_kA<br>
पहले हमें यह जानना होगा कि कुर्मी एक जाति है वही क्षत्रिय एक वर्ण है।
वर्ण कुल चार प्रकार के होते है :-
ब्राह्मण
क्षत्रिय
वैश्य
शुद्र
क्षत्रिय की परिभाषा
क्षत्रिय शब्द क्षत्र शब्द से बना है
क्षत्र शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है
क्षर् + त्र
क्षदति रक्षति जनानू इति क्षत्रिय:
उपयुक्त पंक्ति का अर्थ है कि :-
जीवन की रक्षा करने वाला ही क्षत्रिय है
वही सभी हिन्दू धर्मग्रंथों
व पुस्तको में वर्ण व्यवस्था कर्म आधारित है ना जन्माधारित वही दूसरी ओर जाती व्यवस्था जन्माधारित होती है ना कि कर्मधारित तो भला एक विशेष जाती किसी विशेष वर्ण का हिस्सा कैसे हो सकती है।
पर जब आगे जाकर समाज मे गंदगी,बुराई व अज्ञान बढ़ा तो वर्ण व्यवस्था कर्म से हट कर जन्माधारित ही गई जो कि बिल्कुल गलत और अशुद्ध है। किसी भी हिन्दू धर्मग्रंथ में जन्माधारित वर्ण व्यवस्था का उल्लेख नही है तो फिर ये जन्माधारित वर्ण व्यवस्था क्या है?
यह एक सामाजिक-कुरीति है।
हम जैसे लोग तो सामाजिक-कुरीतियों से दूर ही रहते है, बहिस्कार करते है।
हमारे कुर्मी समाज मे ही संत तुकाराम व भगवान बुद्ध जैसे महात्मा हुए की अपने कर्म से ब्राह्मण हुए।
हमारे समाज मे छत्रपति शिवाजी महाराज व संभाजी महाराज जैसे अनेको वीर हुए जो कि अपने कर्म से क्षत्रिय हुए।
हमारे समाज मे ही विष्णु पटेल, सावजी ढोलकिया व पंकज पटेल जैसे कुशल उद्योगपति हुए जो कि अपने कर्म से वैश्य हुए।
हमारे समाज मे ही कुछ लीग सर्विस-प्रोवाइडर है जो कि अपने कर्म से शुद्र हुए।
इसका मतलब कुर्मी एक मानव होने के नाते कुर्मी ब्राह्मण, क्षत्रिय , वैश्य तथा शुद्र कुछ भी हो सकता है।
पर वह जन्म से एक उदारवादी कृषक ही है।
kurmisutra.com पर आने के लिए धन्यवाद
आप हमारे यूट्यूब चैनल KurmiSutra पर भी हमसे जुड़ सकते है:-
https://www.youtube.com/channel/UCTZp0eDApnEgHDHwPthG_kA<br>
Comments
Post a Comment