उत्तर प्रदेश की राजनीति में क्यों पिछड़ा कुर्मी समा
उत्तर प्रदेश जोकि देश का सबसे बड़ा प्रदेश है। लोकसभा की कुल 80 सीटे आती है यहां से ।
ऐसा भी माना जाता है कि दिल्ली का रास्ता उत्तरप्रदेश से हो कर ही निकलता है। तभी तो नरेंद्र मोदी,राहुल गांधी, सोनिया गाँधी जैसे बड़े नेता उत्तरप्रदेश से न होते हुए भी यही से चुनाव लड़ते है और इन्ही वजहों से उत्तरप्रदेश की राजनीति हमेसा गर्म रहती है।
देश के बहुत से प्रधानमंत्रियों के संसदीय-क्षेत्र उत्तरप्रदेश से ही है पर इन सभी के बीच मे एक ऐसा समुदाय है जो अभी भी आने अस्तित्व के लिए लड़ रहा है।
जी हां कुर्मी समाज को उत्तरप्रदेश में 14 फीसदी की आबादी रखता है, अवध,पूर्वांचल, ब्रज तथा पश्चिमी उत्तरप्रदेश हर जगह कुर्मी वोटरों की अच्छी-खासी संख्या है।
प्रदेश में बेनीप्रसाद वर्मा,ओमप्रकाश सिंह तथा संतोष गंगवार जैसे दिग्गज नेता होने के बावजूद कभी भी कोई कुर्मी उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री नही बन सका यहाँ तक कि कैबिनेट में भी सही प्रतिनिधितव तक नही मिला ।
मंडल आयोग की सिफारिश लागू होने के बाद कुर्मी समाज को सीधे-तौर पर फायदा हुआ पर यह फायदा और उछाल सीमित रह गयी।
कुर्मी समाज के पिछड़ेपन के मुख्य कारण:-
अंतर-उपजातीय तथा अंतर-जनपदी विवाहों की कमी
हम सभी ने बचपन मे तीन भाइयो की कहानी अवश्य सुनी होगी जिसमें भाईयो को एक एक करके लकड़िया दी जाती है और वह उन्हें तोड़ देते पर जब उन्हें कई लकड़िया दी जाती है तो वह उन्हें नही तोड़ पाते है।
कहानी एकता की आवश्यकता को दरशाती है
यह कहानी कुर्मी समाज पर बिल्कुल सगी बैढती है अगर कुर्मी समाज की सारी उपजातियां साथ रहे एक मंच पर आए तो निश्चित रूप से कुर्मी समाज की शक्तियों में बढ़ोतरी आएगी पर जब तक हम उपजाति क्षेत्र आदि के भेदों में विभाजित रहेंगे तब तक हमारी शक्तियां भी सीमित रहेंगी।
सर्व-मान्य नेता की कमी
क्षेत्रीय रूप से कुर्मी समाज मे बेनीप्रसाद वर्मा संतोष गंगवार तथा ओमप्रकाश सिंह जैसे बड़े नेता होने के बावजूद वह कभी भी प्रदेश का नैतृत्व नही कर सके क्यों उनका जनाधार सीमित था और परिदामस्वरूप उनका राजनीतिक करियर भी सीमित रहा।
राजनीतिक चेतना की कमी
कुर्मी समाज की सबसे बड़ी कमजोरी जिसके वजह से हम आज इस स्तिथि में पहुच गए कि छत्रपति के वंशजों को अपनी मौजोदगी दर्ज करानी पड़ रही है। हम दलो के लिए एक बड़ा वोटबैंक तो बन गए पर कभी भी हमे जनसंख्या के अनुपात में सही प्रतिनिधित्व नही मिला।
Kurmihistory.com पर आने के लिए धन्यवाद
आप हमारे यूट्यूब चैनल KurmiSutra पर भी हमसे जुड़ सकते है:-
https://www.youtube.com/channel/UCTZp0eDApnEgHDHwPthG_kA
उत्तर प्रदेश जोकि देश का सबसे बड़ा प्रदेश है। लोकसभा की कुल 80 सीटे आती है यहां से ।
ऐसा भी माना जाता है कि दिल्ली का रास्ता उत्तरप्रदेश से हो कर ही निकलता है। तभी तो नरेंद्र मोदी,राहुल गांधी, सोनिया गाँधी जैसे बड़े नेता उत्तरप्रदेश से न होते हुए भी यही से चुनाव लड़ते है और इन्ही वजहों से उत्तरप्रदेश की राजनीति हमेसा गर्म रहती है।
देश के बहुत से प्रधानमंत्रियों के संसदीय-क्षेत्र उत्तरप्रदेश से ही है पर इन सभी के बीच मे एक ऐसा समुदाय है जो अभी भी आने अस्तित्व के लिए लड़ रहा है।
जी हां कुर्मी समाज को उत्तरप्रदेश में 14 फीसदी की आबादी रखता है, अवध,पूर्वांचल, ब्रज तथा पश्चिमी उत्तरप्रदेश हर जगह कुर्मी वोटरों की अच्छी-खासी संख्या है।
प्रदेश में बेनीप्रसाद वर्मा,ओमप्रकाश सिंह तथा संतोष गंगवार जैसे दिग्गज नेता होने के बावजूद कभी भी कोई कुर्मी उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री नही बन सका यहाँ तक कि कैबिनेट में भी सही प्रतिनिधितव तक नही मिला ।
मंडल आयोग की सिफारिश लागू होने के बाद कुर्मी समाज को सीधे-तौर पर फायदा हुआ पर यह फायदा और उछाल सीमित रह गयी।
कुर्मी समाज के पिछड़ेपन के मुख्य कारण:-
अंतर-उपजातीय तथा अंतर-जनपदी विवाहों की कमी
हम सभी ने बचपन मे तीन भाइयो की कहानी अवश्य सुनी होगी जिसमें भाईयो को एक एक करके लकड़िया दी जाती है और वह उन्हें तोड़ देते पर जब उन्हें कई लकड़िया दी जाती है तो वह उन्हें नही तोड़ पाते है।
कहानी एकता की आवश्यकता को दरशाती है
यह कहानी कुर्मी समाज पर बिल्कुल सगी बैढती है अगर कुर्मी समाज की सारी उपजातियां साथ रहे एक मंच पर आए तो निश्चित रूप से कुर्मी समाज की शक्तियों में बढ़ोतरी आएगी पर जब तक हम उपजाति क्षेत्र आदि के भेदों में विभाजित रहेंगे तब तक हमारी शक्तियां भी सीमित रहेंगी।
सर्व-मान्य नेता की कमी
क्षेत्रीय रूप से कुर्मी समाज मे बेनीप्रसाद वर्मा संतोष गंगवार तथा ओमप्रकाश सिंह जैसे बड़े नेता होने के बावजूद वह कभी भी प्रदेश का नैतृत्व नही कर सके क्यों उनका जनाधार सीमित था और परिदामस्वरूप उनका राजनीतिक करियर भी सीमित रहा।
राजनीतिक चेतना की कमी
कुर्मी समाज की सबसे बड़ी कमजोरी जिसके वजह से हम आज इस स्तिथि में पहुच गए कि छत्रपति के वंशजों को अपनी मौजोदगी दर्ज करानी पड़ रही है। हम दलो के लिए एक बड़ा वोटबैंक तो बन गए पर कभी भी हमे जनसंख्या के अनुपात में सही प्रतिनिधित्व नही मिला।
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