मीडिया के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुर्मी समाज की जनसंख्या 3 से 5 प्रतिशत
है। हालांकि यह काफी विवादस्पक रहा है बहुत से कुर्मी संगठनों ने इसका
खंडन किया है कुर्मियों का अपना खुद का अनुमान कहता है कि वह उत्तर प्रदेश
में पिछड़े वर्ग में आने वाली सबसे बडी जाती है और उनकी जनसंख्या 13% के
आसपास है । यह दावा मीडिया के दावे से ज्यादा सही लगता है क्योंकि कुर्मी
समाज पूर्वांचल और अवध मे बडी राजनैतिक शक्ति है वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश
मे भी कुर्मी समाज की मौजूदगी है मेरठ, मुजफ्फरनगर, आगरा, इटावा आदि जिलों
में कुर्मी समाज की अच्छी खासी आबादी है । उत्तर प्रदेश की राजनीति में
जहाँ 90% से अधिक अहिरों, सवर्णों, अल्पसंख्यकों व दलितों के वोट उनके
पारंपरिक दलो को पहले से ही फिक्स होते हैं वहाँ 13% के आबादी वाले कुर्मी
समाज के वोटों की अहमियत बड़ जाती हैं जो कि लगभग हर चुनाव में अपना दल
बदलतें हैं और यही वोट जिस दल को जातें हैं वह उत्तर प्रदेश में प्रचंड
बहुमत से सरकार बनाते हैं। 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनावों मे
भाजपा को उत्तर प्रदेश में मिली बंपर जीत का श्रैय काफी हद तक कुर्मी समाज
को जाता है।आबादी में अधिक और राजनीतिक जरूरतों के हिसाब से कुर्मी समाज एक
बडी राजनीति शक्ति है परंतु इन सभी के बाद भी कुर्मी समाज बडा वोटबैंक तो
बनपाया पर कभी भी कोई कुर्मी मुख्यमंत्री तो क्या उप-मुख्यमंत्री भी नहीं
बन सका सरकार चाहे जिस दल की हो कुर्मी समाज को अच्छी हिस्सेदारी नहीं मिली
इसके बहुत से कारण है।विभिन्न उपजातियों मे
विभिन्न क्षेत्रीय नेता तथा प्रदेश स्तर पर कुर्मी समाज का कोई बड़ा चेहरा नहीं उप जातियों और दूसरे जनपदों के कुर्मी समाज के बीच रोटी बेटी के संबंध सही ढंग से स्थापित ना हो पाने के कारण सामाजिक स्तर पर भी कुर्मी समाज अलग और खंडित हो गया हालांकि 2017 के चुनावों में कुर्मी समाज से रिकॉर्ड 33 विधायक चुनकर आए प्रदेश स्तर पर भी स्वतंत्र देव सिंह और अनुप्रिया पटेल जैसे बड़े चेहरे हैं कुर्मी समाज में अब अंतर उपजाति तथा अंतर्जनपदीय विवाह हो रहे हैं जिससे प्रदेशभर का कुर्मी समाज संगठित हो रहा है दशकों से सत्ता से दूर रहने के बाद अब कुर्मी समाज जागरूक और सशक्त हो रहा है उम्मीद है कुर्मी समाज को भविष्य में आबादी के हिसाब से सरकार में उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा और किसी कुर्मी पुत्र या पुमीडिया के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुर्मी समाज की जनसंख्या 3 से 5 प्रतिशत है। हालांकि यह काफी विवादस्पक रहा है बहुत से कुर्मी संगठनों ने इसका खंडन किया है कुर्मियों का अपना खुद का अनुमान कहता है कि वह उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग में आने वाली सबसे बडी जाती है और उनकी जनसंख्या 13% के आसपास है । यह दावा मीडिया के दावे से ज्यादा सही लगता है क्योंकि कुर्मी समाज पूर्वांचल और अवध मे बडी राजनैतिक शक्ति है वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे भी कुर्मी समाज की मौजूदगी है मेरठ, मुजफ्फरनगर, आगरा, इटावा आदि जिलों में कुर्मी समाज की अच्छी खासी आबादी है । उत्तर प्रदेश की राजनीति में जहाँ 90% से अधिक अहिरों, सवर्णों, अल्पसंख्यकों व दलितों के वोट उनके पारंपरिक दलो को पहले से ही फिक्स होते हैं वहाँ 13% के आबादी वाले कुर्मी समाज के वोटों की अहमियत बड़ जाती हैं जो कि लगभग हर चुनाव में अपना दल बदलतें हैं और यही वोट जिस दल को जातें हैं वह उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत से सरकार बनाते हैं। 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनावों मे भाजपा को उत्तर प्रदेश में मिली बंपर जीत का श्रैय काफी हद तक कुर्मी समाज को जाता है।आबादी में अधिक और राजनीतिक जरूरतों के हिसाब से कुर्मी समाज एक बडी राजनीति शक्ति है परंतु इन सभी के बाद भी कुर्मी समाज बडा वोटबैंक तो बनपाया पर कभी भी कोई कुर्मी मुख्यमंत्री तो क्या उप-मुख्यमंत्री भी नहीं बन सका सरकार चाहे जिस दल की हो कुर्मी समाज को अच्छी हिस्सेदारी नहीं मिली इसके बहुत से कारण है।विभिन्न उपजातियों मे
विभिन्न क्षेत्रीय नेता तथा प्रदेश स्तर पर कुर्मी समाज का कोई बड़ा चेहरा नहीं उप जातियों और दूसरे जनपदों के कुर्मी समाज के बीच रोटी बेटी के संबंध सही ढंग से स्थापित ना हो पाने के कारण सामाजिक स्तर पर भी कुर्मी समाज अलग और खंडित हो गया हालांकि 2017 के चुनावों में कुर्मी समाज से रिकॉर्ड 33 विधायक चुनकर आए प्रदेश स्तर पर भी स्वतंत्र देव सिंह और अनुप्रिया पटेल जैसे बड़े चेहरे हैं कुर्मी समाज में अब अंतर उपजाति तथा अंतर्जनपदीय विवाह हो रहे हैं जिससे प्रदेशभर का कुर्मी समाज संगठित हो रहा है दशकों से सत्ता से दूर रहने के बाद अब कुर्मी समाज जागरूक और सशक्त हो रहा है उम्मीद है कुर्मी समाज को भविष्य में आबादी के हिसाब से सरकार में उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा और किसी कुर्मी पुत्र या पुत्री के कंधों पर देश के सबसे बड़े राज्य की जिम्मेदारी होगी
विभिन्न क्षेत्रीय नेता तथा प्रदेश स्तर पर कुर्मी समाज का कोई बड़ा चेहरा नहीं उप जातियों और दूसरे जनपदों के कुर्मी समाज के बीच रोटी बेटी के संबंध सही ढंग से स्थापित ना हो पाने के कारण सामाजिक स्तर पर भी कुर्मी समाज अलग और खंडित हो गया हालांकि 2017 के चुनावों में कुर्मी समाज से रिकॉर्ड 33 विधायक चुनकर आए प्रदेश स्तर पर भी स्वतंत्र देव सिंह और अनुप्रिया पटेल जैसे बड़े चेहरे हैं कुर्मी समाज में अब अंतर उपजाति तथा अंतर्जनपदीय विवाह हो रहे हैं जिससे प्रदेशभर का कुर्मी समाज संगठित हो रहा है दशकों से सत्ता से दूर रहने के बाद अब कुर्मी समाज जागरूक और सशक्त हो रहा है उम्मीद है कुर्मी समाज को भविष्य में आबादी के हिसाब से सरकार में उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा और किसी कुर्मी पुत्र या पुमीडिया के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुर्मी समाज की जनसंख्या 3 से 5 प्रतिशत है। हालांकि यह काफी विवादस्पक रहा है बहुत से कुर्मी संगठनों ने इसका खंडन किया है कुर्मियों का अपना खुद का अनुमान कहता है कि वह उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग में आने वाली सबसे बडी जाती है और उनकी जनसंख्या 13% के आसपास है । यह दावा मीडिया के दावे से ज्यादा सही लगता है क्योंकि कुर्मी समाज पूर्वांचल और अवध मे बडी राजनैतिक शक्ति है वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे भी कुर्मी समाज की मौजूदगी है मेरठ, मुजफ्फरनगर, आगरा, इटावा आदि जिलों में कुर्मी समाज की अच्छी खासी आबादी है । उत्तर प्रदेश की राजनीति में जहाँ 90% से अधिक अहिरों, सवर्णों, अल्पसंख्यकों व दलितों के वोट उनके पारंपरिक दलो को पहले से ही फिक्स होते हैं वहाँ 13% के आबादी वाले कुर्मी समाज के वोटों की अहमियत बड़ जाती हैं जो कि लगभग हर चुनाव में अपना दल बदलतें हैं और यही वोट जिस दल को जातें हैं वह उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत से सरकार बनाते हैं। 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनावों मे भाजपा को उत्तर प्रदेश में मिली बंपर जीत का श्रैय काफी हद तक कुर्मी समाज को जाता है।आबादी में अधिक और राजनीतिक जरूरतों के हिसाब से कुर्मी समाज एक बडी राजनीति शक्ति है परंतु इन सभी के बाद भी कुर्मी समाज बडा वोटबैंक तो बनपाया पर कभी भी कोई कुर्मी मुख्यमंत्री तो क्या उप-मुख्यमंत्री भी नहीं बन सका सरकार चाहे जिस दल की हो कुर्मी समाज को अच्छी हिस्सेदारी नहीं मिली इसके बहुत से कारण है।विभिन्न उपजातियों मे
विभिन्न क्षेत्रीय नेता तथा प्रदेश स्तर पर कुर्मी समाज का कोई बड़ा चेहरा नहीं उप जातियों और दूसरे जनपदों के कुर्मी समाज के बीच रोटी बेटी के संबंध सही ढंग से स्थापित ना हो पाने के कारण सामाजिक स्तर पर भी कुर्मी समाज अलग और खंडित हो गया हालांकि 2017 के चुनावों में कुर्मी समाज से रिकॉर्ड 33 विधायक चुनकर आए प्रदेश स्तर पर भी स्वतंत्र देव सिंह और अनुप्रिया पटेल जैसे बड़े चेहरे हैं कुर्मी समाज में अब अंतर उपजाति तथा अंतर्जनपदीय विवाह हो रहे हैं जिससे प्रदेशभर का कुर्मी समाज संगठित हो रहा है दशकों से सत्ता से दूर रहने के बाद अब कुर्मी समाज जागरूक और सशक्त हो रहा है उम्मीद है कुर्मी समाज को भविष्य में आबादी के हिसाब से सरकार में उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा और किसी कुर्मी पुत्र या पुत्री के कंधों पर देश के सबसे बड़े राज्य की जिम्मेदारी होगी
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